अपनी महफ़िल में रक़ीबों को बुलाया उस ने
उन में भी ख़ास उन्हें जिन की ज़रूरत देखी
Gulzar
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मकतब की आशिक़ी भी तारीख़-ए-ज़िंदगी थी
दिल क्या करे जो राज़ मोहब्बत का खुल गया
न रो इतना पराए वास्ते ऐ दीदा-ए-गिर्यां
आप से मुझ को मोहब्बत जो नहीं है न सही
ईमान साथ जाएगा क्यूँकर ख़ुदा के घर
हसीनों पर नहीं मरता मैं इस हसरत में मरता हूँ
हम वफ़ा करते हैं हम पर जौर कोई क्यूँ करे
अदू को छोड़ दो फिर जान भी माँगो तो हाज़िर है
सुनोगे हाल जो मेरा तो दाद क्या दोगे
साक़ी ने लगी दिल की इस तरह बुझा दी थी
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता
ठहरना दिल में कुछ बेहतर न जाना