असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
कहाँ गया मिरा बचपन ख़राब कर के मुझे
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यहाँ से जब गई थी तब असर पर ख़ार खाए थी
जब कहा मैं हूँ तिरे इश्क़ में बदनाम कि तू
ये तो मुमकिन नहीं मोहब्बत में
मिरे गुनाह ज़ियादा हैं या तिरी रहमत
बुरा हूँ मैं जो किसी की बुराइयों में नहीं
न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ
माइल-ए-सोहबत-ए-अग़्यार तो हम हैं तुम कौन
तुम्हारी जल्वा-गाह-ए-नाज़ में अंधेर ही कब था
आह-ए-रसा ख़ुदा के लिए देख-भाल के
फूंके देता है किसी का सोज़-ए-पिन्हानी मुझे
क़िबला बन जाए जहाँ तू कोई पत्थर रख दे
तसव्वुर में तिरा दर अपने सर तक खींच लेता हूँ