फूंके देता है किसी का सोज़-ए-पिन्हानी मुझे
अब तो मेरी आँख भी देती नहीं पानी मुझे
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Gulzar
Anwar Masood
Javed Akhtar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(280) Peoples Rate This
इस से पहले मैं कभी आबाद घर बस्ती में था
तमन्ना इक तरह की जान है जो मरते दम निकले
साक़ी ने लगी दिल की इस तरह बुझा दी थी
मिरे उन के तअ'ल्लुक़ पर कोई अब कुछ नहीं कहता
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता
जफ़ा से वफ़ा मुस्तरद हो गई
ऐश के रंग मलालों से दबे जाते हैं
वहाँ जा कर किए हैं मैं ने सज्दे अपनी हस्ती को
ज़ाहिद तो बख़्शे जाएँ गुनहगार मुँह तकें
चूकी नज़र जो ज़ाहिद-ए-ख़ाना-ख़राब की
मिरे अरमान मायूसी के पाले पड़ते जाते हैं
कोई अच्छा नज़र आ जाए तो इक बात भी है