चूकी नज़र जो ज़ाहिद-ए-ख़ाना-ख़राब की
तौबा उड़ा के ले गई बोतल शराब की
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मेरे ग़ुबार की ये तअ'ल्ली तो देखिए
जब कहा मैं ने कि मर मर के बचे हिज्र में हम
उठते जोबन पे खिल पड़े गेसू
नमक-पाश ज़ख़्म-ए-जिगर अब तो आ जा
ऐश के रंग मलालों से दबे जाते हैं
कैसे दिल लगता हरम में दौर-ए-पैमाना न था
पर्दे वाले भी कहीं आते हैं घर से बाहर
रंज-ए-ग़ुर्बत में देख कर मुझ को
एक हम हैं कि जहाँ जाएँ बुरे कहलाएँ
मेरे अश्कों की रवानी को रवानी तो कहो
मोहब्बत बुत-कदे में चल के उस का फ़ैसला कर दे
कोई ले ले तो दिल देने को मैं तय्यार बैठा हूँ