पर्दे वाले भी कहीं आते हैं घर से बाहर
अब जो आ बैठे हो तुम दिल में तो बैठे रहना
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निछावर बुत-कदे पर दिल करूँ का'बा तो कोसों है
मेरी हस्ती से तो अच्छी हैं हवाएँ यारब
ज़ुल्फ़ को क्यूँ जकड़ के बाँधा है
वो क़ुदरत के नमूने क्या हुए जो उस में पहले थे
दूर क्यूँ जाऊँ यहीं जल्वा-नुमा बैठा है
वक़्त आराम का नहीं मिलता
सुनोगे हाल जो मेरा तो दाद क्या दोगे
यहाँ से जब गई थी तब असर पर ख़ार खाए थी
वो गले से लिपट के सोते हैं
फ़ना के बा'द इस दुनिया में कुछ बाक़ी नहीं रहता
यही सूरत वहाँ थी बे-ज़रूरत बुत-कदा छोड़ा
वो क़ज़ा के रंज में जान दें कि नमाज़ जिन की क़ज़ा हुई