वक़्त आराम का नहीं मिलता
काम भी काम का नहीं मिलता
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दम-ए-आख़िर मुसीबत काट दो बहर-ए-ख़ुदा मेरी
किसी के कम हैं किसी के बहुत मगर ज़ाहिद
ख़त फाड़ के फेंका है तो लिक्खा भी मिटा दो
सुनोगे हाल जो मेरा तो दाद क्या दोगे
चाहत की तमन्ना से कोई आँच न आई
फूंके देता है किसी का सोज़-ए-पिन्हानी मुझे
रूह देती रही तर्ग़ीब-ए-तअ'ल्ली बरसों
जनाब-ए-ख़िज़्र राह-ए-इश्क़ में लड़ने से क्या हासिल
साक़ी तिरी नज़र तो क़यामत सी ढा गई
इकट्ठे कर के तेरी दूसरी तस्वीर खींचूँगा
अपनी महफ़िल में रक़ीबों को बुलाया उस ने
ज़ाहिद तो बख़्शे जाएँ गुनहगार मुँह तकें