किसी के कम हैं किसी के बहुत मगर ज़ाहिद
गुनाह करने को क्या पारसा नहीं करते
Mohsin Naqvi
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Gulzar
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
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दिल क्या करे जो राज़ मोहब्बत का खुल गया
इक पर्दा-नशीं की आरज़ू है
वो गले से लिपट के सोते हैं
ज़ुल्फ़ का हाल तक कभी न सुना
ठहरना दिल में कुछ बेहतर न जाना
फ़स्ल-ए-गुल भी तरस के काटी है
नमक-पाश ज़ख़्म-ए-जिगर अब तो आ जा
तमन्ना इक तरह की जान है जो मरते दम निकले
कोई ले ले तो दिल देने को मैं तय्यार बैठा हूँ
उम्र काटी बुतों की आड़ों में
उड़ा कर ख़ाक हम काबे जो पहुँचे
मेरे ग़ुबार की ये तअ'ल्ली तो देखिए