किसी के कम हैं किसी के बहुत मगर ज़ाहिद
गुनाह करने को क्या पारसा नहीं करते
Mir Taqi Mir
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Jaun Eliya
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वहाँ जा कर किए हैं मैं ने सज्दे अपनी हस्ती को
ऐ बुतो रंज के साथी हो न आराम के तुम
उन को आती थी नींद और मुझ को
जलवा-ए-रुख़सार-ए-साक़ी साग़र-ओ-मीना में है
वक़्त दो मुझ पर कठिन गुज़रे हैं सारी उम्र में
जो पूछा दिल हमारा क्यूँ लिया तो नाज़ से बोले
जो पूछा मुँह दिखाने आप कब चिलमन से निकलेंगे
वो पहली सब वफ़ाएँ क्या हुईं अब ये जफ़ा कैसी
गए हम दैर से काबे मगर ये कह के फिर आए
इक नक़्श-ए-ख़याल रू-ब-रू है
तरीक़ याद है पहले से दिल लगाने का
पहले हम में थे और अब हम से जुदा रहते हैं