वो पहली सब वफ़ाएँ क्या हुईं अब ये जफ़ा कैसी
वो पहली सब अदाएँ क्या हुईं अब ये अदा क्यूँ है
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मकतब की आशिक़ी भी तारीख़-ए-ज़िंदगी थी
मैं तिरी राह-ए-तलब में ब-तमन्ना-ए-विसाल
ज़ुल्फ़ का हाल तक कभी न सुना
उन्हों ने क्या न किया और क्या नहीं करते
आरज़ू दिल में बनाए हुए घर है भी तो क्या
इक नक़्श-ए-ख़याल रू-ब-रू है
दम दे दिया है किस रुख़-ए-रौशन की याद में
दिल क्या करे जो राज़ मोहब्बत का खुल गया
क्या असर ख़ाक था मजनूँ के फटे कपड़ों में
हसीनों पर नहीं मरता मैं इस हसरत में मरता हूँ
किसी के कम हैं किसी के बहुत मगर ज़ाहिद
मसीहा जा रहा है दौड़ कर आवाज़ दो 'मुज़्तर'