वो पास आने न पाए कि आई मौत की नींद
नसीब सो गए मसरूफ़-ए-ख़्वाब कर के मुझे
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इतने अच्छे हो कि बस तौबा भली
रूह देती रही तर्ग़ीब-ए-तअ'ल्ली बरसों
ये तो समझा मैं ख़ुदा को कि ख़ुदा है लेकिन
तेरी उलझी हुई बातों से मिरा दिल उलझा
दिल उन को मुफ़्त देने में दुश्मन को रश्क क्यूँ
न बुलवाया न आए रोज़ वा'दा कर के दिन काटे
सुनोगे हाल जो मेरा तो दाद क्या दोगे
उन को आती थी नींद और मुझ को
ऐ ख़ुदा दुनिया पे अब क़ब्ज़ा बुतों का चाहिए
मोहब्बत को कहते हो बरती भी थी
किसी का जल्वा-ए-रंगीं ये कहता है इन्हें पूजो
मिरे अरमान मायूसी के पाले पड़ते जाते हैं