वो क़ुदरत के नमूने क्या हुए जो उस में पहले थे
मैं का'बा क्या करूँ मुझ से ये घर देखा नहीं जाता
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कुछ न पूछो कि क्यूँ गया काबे
ज़ाहिद तो बख़्शे जाएँ गुनहगार मुँह तकें
हमारे मय-कदे में ख़ैर से हर चीज़ रहती है
अदू को छोड़ दो फिर जान भी माँगो तो हाज़िर है
ये पैदा होते ही रोना सरीहन बद-शुगूनी है
पहले हम में थे और अब हम से जुदा रहते हैं
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता
जो पूछा दिल हमारा क्यूँ लिया तो नाज़ से बोले
दिल को मैं अपने पास क्यूँ रक्खूँ
नहीं मंज़ूर जब मिलना तो वा'दे की ज़रूरत क्या
निछावर बुत-कदे पर दिल करूँ का'बा तो कोसों है
अगर तुम दिल हमारा ले के पछताए तो रहने दो