दिल को मैं अपने पास क्यूँ रक्खूँ
तू ही ले जा अगर ये तेरा है
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इतने अच्छे हो कि बस तौबा भली
उम्र सब ज़ौक़-ए-तमाशा में गुज़ारी लेकिन
पहले हम में थे और अब हम से जुदा रहते हैं
किसी के संग-ए-दर से अपनी मय्यत ले के उट्ठेंगे
लुत्फ़-ए-क़ुर्बत है मय-परस्ती में
तुम अगर चाहो तो मिट्टी से अभी पैदा हों फूल
सहें कब तक जफ़ाएँ बेवफ़ाई देखने वाले
हम उम्र के साथ हैं सफ़र में
वो करेंगे वस्ल का वा'दा वफ़ा
ख़ाल-ओ-आरिज़ का तसव्वुर है हमारे दिल में
कहीं जो बुलबुल ने देख पाया तो मेरी उस की नहीं बनेगी
मैं मसीहा उसे समझता हूँ