तुम अगर चाहो तो मिट्टी से अभी पैदा हों फूल
मैं अगर माँगूँ तो दरिया भी न दे पानी मुझे
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मुख़ालिफ़ है सबा-ए-नामा-बर कुछ और कहती है
पर्दा-ए-दर्द में आराम बटा करते हैं
वो क़ुदरत के नमूने क्या हुए जो उस में पहले थे
गए हम दैर से काबे मगर ये कह के फिर आए
ख़िदमत-ए-गश्त बगूलों को तो दी सहरा में
मोहब्बत कर के लाखों रंज झेले बेकली पाई
क़यामत में बड़ी गर्मी पड़ेगी हज़रत-ए-ज़ाहिद
गवाह-ए-वस्ल-ए-अदू सर झुका के देख न लो
वफ़ा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते
तुम्हें चाहूँ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ
मैं तिरी राह-ए-तलब में ब-तमन्ना-ए-विसाल
कैसे दिल लगता हरम में दौर-ए-पैमाना न था