तुम्हें चाहूँ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ
मिरा दिल फेर दो मुझ से ये झगड़ा हो नहीं सकता
Gulzar
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दिल ले के हसीनों ने ये दस्तूर निकाला
किसी के कम हैं किसी के बहुत मगर ज़ाहिद
पर्दा-ए-दर्द में आराम बटा करते हैं
मकतब की आशिक़ी भी तारीख़-ए-ज़िंदगी थी
कहीं जो बुलबुल ने देख पाया तो मेरी उस की नहीं बनेगी
मेरी हस्ती से तो अच्छी हैं हवाएँ यारब
मोहब्बत में किसी ने सर पटकने का सबब पूछा
गए हम दैर से काबे मगर ये कह के फिर आए
ख़ुदा भी जब न हो मालूम तब जानो मिटी हस्ती
उस से कह दो कि वो जफ़ा न करे
दम निकल जाएगा रुख़्सत का अभी नाम न लो