तुम्हें चाहूँ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ
मिरा दिल फेर दो मुझ से ये झगड़ा हो नहीं सकता
Faiz Ahmad Faiz
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Gulzar
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Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
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तमन्ना इक तरह की जान है जो मरते दम निकले
क़यामत में बड़ी गर्मी पड़ेगी हज़रत-ए-ज़ाहिद
जलेगा दिल तुम्हें बज़्म-ए-अदू में देख कर मेरा
नहीं मंज़ूर जब मिलना तो वा'दे की ज़रूरत क्या
उन्हों ने क्या न किया और क्या नहीं करते
चाहत की नज़र आप से डाली भी गई है
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता
दम निकल जाएगा रुख़्सत का अभी नाम न लो
ये नक़्शा है कि मुँह तकने लगा है मुद्दआ' मेरा
निगाह-ए-यार मिल जाती तो हम शागिर्द हो जाते
चूकी नज़र जो ज़ाहिद-ए-ख़ाना-ख़राब की
सुब्ह तक कौन जियेगा शब-ए-तन्हाई में