तुम्हारी जल्वा-गाह-ए-नाज़ में अंधेर ही कब था
ये मूसा दौड़ कर किस को दिखाने शम्अ' तूर आए
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तेरी उलझी हुई बातों से मिरा दिल उलझा
तेरी रंगत बहार से निकली
हमारे एक दिल को उन की दो ज़ुल्फ़ों ने घेरा है
मेरे अरमाँ वो सुधारे यूँ के यूंहीं रह गए
रवाँ रहता है किस की मौज में दिन रात तू पानी
ऐ हिना रंग-ए-मोहब्बत तो है मुझ में भी निहाँ
मोहब्बत बा'इस-ए-ना-मेहरबानी होती जाती है
याद करना ही हम को याद रहा
फूंके देता है किसी का सोज़-ए-पिन्हानी मुझे
ये तुम बे-वक़्त कैसे आज आ निकले सबब क्या है
पर्दे वाले भी कहीं आते हैं घर से बाहर
क़ब्र पर क्या हुआ जो मेला है