हमारे एक दिल को उन की दो ज़ुल्फ़ों ने घेरा है
ये कहती है कि मेरा है वो कहती है कि मेरा है
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आतिश-ए-हुस्न से इक आब है रुख़्सारों में
कैसे दिल लगता हरम में दौर-ए-पैमाना न था
क़िबला बन जाए जहाँ तू कोई पत्थर रख दे
यही सूरत वहाँ थी बे-ज़रूरत बुत-कदा छोड़ा
मदहोश ही रहा मैं जहान-ए-ख़राब में
किसी के कम हैं किसी के बहुत मगर ज़ाहिद
गवाह-ए-वस्ल-ए-अदू सर झुका के देख न लो
पूछा कि वज्ह-ए-ज़िंदगी बोले कि दिलदारी मिरी
सहें कब तक जफ़ाएँ बेवफ़ाई देखने वाले
तेरी उलझी हुई बातों से मिरा दिल उलझा
हसीनों पर नहीं मरता मैं इस हसरत में मरता हूँ
दिल-दादगान-ए-हुस्न से पर्दा न चाहिए