हसीनों पर नहीं मरता मैं इस हसरत में मरता हूँ
कि ऐसे ऐसे लोगों के लिए ज़ालिम क़ज़ा क्यूँ है
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Anwar Masood
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Habib Jalib
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Wasi Shah
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जुनूँ के जोश में इंसान रुस्वा हो ही जाता है
कूचा-ए-यार से यारब न उठाना हम को
इतने अच्छे हो कि बस तौबा भली
क्या कहूँ हसरत-ए-दीदार ने क्या क्या खींचा
ठहरना दिल में कुछ बेहतर न जाना
वो शायद हम से अब तर्क-ए-तअल्लुक़ करने वाले हैं
मुख़ालिफ़ है सबा-ए-नामा-बर कुछ और कहती है
निगाहों में फिरती है आठों-पहर
कोई ले ले तो दिल देने को मैं तय्यार बैठा हूँ
कह दो साक़ी से कि प्यासा न निकाले मुझ को
जितने बुत हैं मैं सब पे मरता हूँ
आँखें न चुराओ दिल में रह कर