तेरी उलझी हुई बातों से मिरा दिल उलझा
तेरे बिखरे हुए बालों ने परेशान किया
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ज़ुल्फ़ को क्यूँ जकड़ के बाँधा है
इकट्ठे कर के तेरी दूसरी तस्वीर खींचूँगा
हम से अच्छा नहीं मिलने का अगर तुम चाहो
किसी के संग-ए-दर से अपनी मय्यत ले के उट्ठेंगे
जुदाई मुझ को मारे डालती है
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता
हज़ारों हुस्न वाले इस ज़मीं में दफ़न हैं 'मुज़्तर'
ज़ेर-ए-ज़मीं रहूँ कि तह-ए-आसमाँ रहूँ
सहें कब तक जफ़ाएँ बेवफ़ाई देखने वाले
ख़ुदा भी जब न हो मालूम तब जानो मिटी हस्ती
तू न आएगा तो हो जाएँगी ख़ुशियाँ सब ख़ाक
वो पहली सब वफ़ाएँ क्या हुईं अब ये जफ़ा कैसी