हम से अच्छा नहीं मिलने का अगर तुम चाहो
तुम से अच्छे अभी मिलते हैं अगर हम चाहें
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उन्हीं लोगों की बदौलत ये हसीं अच्छे हैं
ये तो मुमकिन नहीं मोहब्बत में
लुत्फ़-ए-क़ुर्बत है मय-परस्ती में
हसीनों पर नहीं मरता मैं इस हसरत में मरता हूँ
वो गले से लिपट के सोते हैं
क्या कहूँ हसरत-ए-दीदार ने क्या क्या खींचा
उड़ा कर ख़ाक हम काबे जो पहुँचे
नज़र के सामने का'बा भी है कलीसा भी
ख़त फाड़ के फेंका है तो लिक्खा भी मिटा दो
हज़ारों हुस्न वाले इस ज़मीं में दफ़न हैं 'मुज़्तर'
दम-ए-ख़्वाब-ए-राहत बुलाया उन्हों ने तो दर्द-ए-निहाँ की कहानी कहूँगा
बिछड़ना भी तुम्हारा जीते-जी की मौत है गोया