इकट्ठे कर के तेरी दूसरी तस्वीर खींचूँगा
वो सब जल्वे जो छन छन कर तिरी चिलमन से निकलेंगे
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किसी के कम हैं किसी के बहुत मगर ज़ाहिद
हाल उस ने हमारा पूछा है
निगाह-ए-यार मिल जाती तो हम शागिर्द हो जाते
मेरे महबूब तुम हो यार तुम हो दिल-रुबा तुम हो
उम्र काटी बुतों की आड़ों में
उठे उठ कर चले चल कर थमे थम कर कहा होगा
ये पैदा होते ही रोना सरीहन बद-शुगूनी है
हाल-ए-दिल अग़्यार से कहना पड़ा
एक हम हैं कि जहाँ जाएँ बुरे कहलाएँ
कुछ न पूछो कि क्यूँ गया काबे
हज़ारों हुस्न वाले इस ज़मीं में दफ़न हैं 'मुज़्तर'
तड़प ही तड़प रह गई सिर्फ़ बाक़ी