उठे उठ कर चले चल कर थमे थम कर कहा होगा
मैं क्यूँ जाऊँ बहुत हैं उन की हालत देखने वाले
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उन्हीं लोगों की बदौलत ये हसीं अच्छे हैं
जो पूछा मुँह दिखाने आप कब चिलमन से निकलेंगे
मेरी हस्ती से तो अच्छी हैं हवाएँ यारब
दूर क्यूँ जाऊँ यहीं जल्वा-नुमा बैठा है
तू न आएगा तो हो जाएँगी ख़ुशियाँ सब ख़ाक
जब कहा मैं ने कि मर मर के बचे हिज्र में हम
गए हम दैर से काबे मगर ये कह के फिर आए
साक़ी वो ख़ास तौर की ता'लीम दे मुझे
ये तो मुमकिन नहीं मोहब्बत में
इस बात का मलाल नहीं है कि दिल गया
इक नक़्श-ए-ख़याल रू-ब-रू है
नमक-पाश ज़ख़्म-ए-जिगर अब तो आ जा