तू न आएगा तो हो जाएँगी ख़ुशियाँ सब ख़ाक
ईद का चाँद भी ख़ाली का महीना होगा
Jaun Eliya
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Parveen Shakir
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Habib Jalib
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इक पर्दा-नशीं की आरज़ू है
फूंके देता है किसी का सोज़-ए-पिन्हानी मुझे
वक़्त-ए-आख़िर याद है साक़ी की मेहमानी मुझे
हम उम्र के साथ हैं सफ़र में
हाल उस ने हमारा पूछा है
ज़ुल्फ़ का हाल तक कभी न सुना
ये तुम बे-वक़्त कैसे आज आ निकले सबब क्या है
उस से कह दो कि वो जफ़ा न करे
वो क़ुदरत के नमूने क्या हुए जो उस में पहले थे
मिरे दल ने झटके उठाए हैं कितने ये तुम अपनी ज़ुल्फ़ों के बालों से पूछो
पहले हम में थे और अब हम से जुदा रहते हैं
किसी बुत की अदा ने मार डाला