मिरे दल ने झटके उठाए हैं कितने ये तुम अपनी ज़ुल्फ़ों के बालों से पूछो
कलेजे की चोटों को मैं क्या बताऊँ ये छाती पे लहराने वालों से पूछो
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वहाँ जा कर किए हैं मैं ने सज्दे अपनी हस्ती को
वो कहते हैं ये सारी बेवफ़ाई है मोहब्बत की
न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ
वो पास आने न पाए कि आई मौत की नींद
जो पूछा मुँह दिखाने आप कब चिलमन से निकलेंगे
वो पहली सब वफ़ाएँ क्या हुईं अब ये जफ़ा कैसी
वो क़ुदरत के नमूने क्या हुए जो उस में पहले थे
चाहत की तमन्ना से कोई आँच न आई
रंज-ए-ग़ुर्बत में देख कर मुझ को
ये नक़्शा है कि मुँह तकने लगा है मुद्दआ' मेरा
उम्र काटी बुतों की आड़ों में