चाहत की तमन्ना से कोई आँच न आई
ये आग मिरे दिल में बड़े ढब से लगी है
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आतिश-ए-हुस्न से इक आब है रुख़्सारों में
न रो इतना पराए वास्ते ऐ दीदा-ए-गिर्यां
किसी के दर्द-ए-मोहब्बत ने उम्र भर के लिए
देख कर काबे को ख़ाली में ये कह कर आ गया
मोहब्बत इब्तिदा में कुछ नहीं मा'लूम होती है
ऐ बुतो रंज के साथी हो न आराम के तुम
ठहरना दिल में कुछ बेहतर न जाना
जिए जाते हैं पस्ती में तिरे सारे जहाँ वाले
मदहोश ही रहा मैं जहान-ए-ख़राब में
गवाह-ए-वस्ल-ए-अदू सर झुका के देख न लो
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
सुब्ह तक कौन जियेगा शब-ए-तन्हाई में