जिए जाते हैं पस्ती में तिरे सारे जहाँ वाले
कभी नीचे भी नज़रें डाल ऊँचे आसमाँ वाले
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हम से अच्छा नहीं मिलने का अगर तुम चाहो
कैसे दिल लगता हरम में दौर-ए-पैमाना न था
वो शायद हम से अब तर्क-ए-तअल्लुक़ करने वाले हैं
ईसा कभी न जाते लेकिन तुम्हारे ग़म में
वक़्त आराम का नहीं मिलता
किसी के दर्द-ए-मोहब्बत ने उम्र भर के लिए
वो पहली सब वफ़ाएँ क्या हुईं अब ये जफ़ा कैसी
आप से मुझ को मोहब्बत जो नहीं है न सही
साक़ी तिरी नज़र तो क़यामत सी ढा गई
मोहब्बत में किसी ने सर पटकने का सबब पूछा
ग़ुरूर-ए-उल्फ़त की तर्ज़-ए-नाज़िश अजब करिश्मे दिखा रही है