आप से मुझ को मोहब्बत जो नहीं है न सही
और ब-क़ौल आप के होने को अगर है भी तो क्या
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हम वफ़ा करते हैं हम पर जौर कोई क्यूँ करे
जा के अब नार-ए-जहन्नम की ख़बर ले ज़ाहिद
जो पूछा मुँह दिखाने आप कब चिलमन से निकलेंगे
इक हम कि हम को सुब्ह से है शाम की ख़ुशी
कुछ न पूछो कि क्यूँ गया काबे
मसीहा जा रहा है दौड़ कर आवाज़ दो 'मुज़्तर'
इस बात का मलाल नहीं है कि दिल गया
जब उन की पतियाँ बिखरें तो समझे मस्लहत उस की
ग़ुरूर-ए-उल्फ़त की तर्ज़-ए-नाज़िश अजब करिश्मे दिखा रही है
जगाने चुटकियाँ लेने सताने कौन आता है
कूचा-ए-यार से यारब न उठाना हम को
हज़ारों हुस्न वाले इस ज़मीं में दफ़न हैं 'मुज़्तर'