जो पूछा मुँह दिखाने आप कब चिलमन से निकलेंगे
तो बोले आप जिस दिन हश्र में मदफ़न से निकलेंगे
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मेरे महबूब तुम हो यार तुम हो दिल-रुबा तुम हो
जलेगा दिल तुम्हें बज़्म-ए-अदू में देख कर मेरा
वो कहते हैं ये सारी बेवफ़ाई है मोहब्बत की
ईमान साथ जाएगा क्यूँकर ख़ुदा के घर
इसी को पी के होती है शिफ़ा बीमार-ए-उल्फ़त को
हसीनों पर नहीं मरता मैं इस हसरत में मरता हूँ
रूह देती रही तर्ग़ीब-ए-तअ'ल्ली बरसों
किसी का जल्वा-ए-रंगीं ये कहता है इन्हें पूजो
तेरे घर आएँ तो ईमान को किस पर छोड़ें
ऐ इश्क़ कहीं ले चल ये दैर-ओ-हरम छूटें
वो कहते हैं कि क्यूँ जी जिस को तुम चाहो वो क्यूँ अच्छा
सुब्ह तक कौन जियेगा शब-ए-तन्हाई में