ईमान साथ जाएगा क्यूँकर ख़ुदा के घर
काबे का रास्ता तो कलीसा से मिल गया
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आओ तो मेरे आइना-ए-दिल के सामने
लुत्फ़-ए-क़ुर्बत है मय-परस्ती में
गवाह-ए-वस्ल-ए-अदू सर झुका के देख न लो
हाल-ए-दिल अग़्यार से कहना पड़ा
मियान-ए-हश्र ये काफ़िर बड़े इतराए फिरते हैं
साक़ी मिरा खिंचा था तो मैं ने मना लिया
दम-ए-ख़्वाब-ए-राहत बुलाया उन्हों ने तो दर्द-ए-निहाँ की कहानी कहूँगा
अपने दिल को तिरी आँखों पे फ़िदा करता हूँ
ये नक़्शा है कि मुँह तकने लगा है मुद्दआ' मेरा
न उस के दामन से मैं ही उलझा न मेरे दामन से ये ही अटकी
ये पैदा होते ही रोना सरीहन बद-शुगूनी है
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे