आओ तो मेरे आइना-ए-दिल के सामने
ऐसा हसीं दिखाऊँ कि ऐसा न हो कहीं
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ये तुम बे-वक़्त कैसे आज आ निकले सबब क्या है
वो पास आने न पाए कि आई मौत की नींद
अहबाब-ओ-अक़ारिब के बरताव कोई देखे
हमारे मय-कदे में ख़ैर से हर चीज़ रहती है
वो क़ज़ा के रंज में जान दें कि नमाज़ जिन की क़ज़ा हुई
मोहब्बत बुत-कदे में चल के उस का फ़ैसला कर दे
ऐ इश्क़ कहीं ले चल ये दैर-ओ-हरम छूटें
तुम्हें चाहूँ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ
दिल उन को मुफ़्त देने में दुश्मन को रश्क क्यूँ
तसव्वुर ख़ाना-आबादी करेगा
ख़्वाहिश-ए-दीद पे इंकार से आते हैं मज़े
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे