ऐ इश्क़ कहीं ले चल ये दैर-ओ-हरम छूटें
इन दोनों मकानों में झगड़ा नज़र आता है
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
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Parveen Shakir
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Allama Iqbal
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
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न बुलवाया न आए रोज़ वा'दा कर के दिन काटे
ये तो मुमकिन नहीं मोहब्बत में
मेरे महबूब तुम हो यार तुम हो दिल-रुबा तुम हो
साक़ी मिरा खिंचा था तो मैं ने मना लिया
आँखें न चुराओ दिल में रह कर
मदहोश ही रहा मैं जहान-ए-ख़राब में
मुसीबत और लम्बी ज़िंदगानी
मियान-ए-हश्र ये काफ़िर बड़े इतराए फिरते हैं
मुख़ालिफ़ है सबा-ए-नामा-बर कुछ और कहती है
तमन्ना इक तरह की जान है जो मरते दम निकले
कोई अच्छा नज़र आ जाए तो इक बात भी है
वो क़ज़ा के रंज में जान दें कि नमाज़ जिन की क़ज़ा हुई