साक़ी मिरा खिंचा था तो मैं ने मना लिया
ये किस तरह मने जो धरी है खिंची हुई
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सहें कब तक जफ़ाएँ बेवफ़ाई देखने वाले
तेरी रहमत का नाम सुन सुन कर
बुरा हूँ मैं जो किसी की बुराइयों में नहीं
वो गले से लिपट के सोते हैं
उन को आती थी नींद और मुझ को
फूंके देता है किसी का सोज़-ए-पिन्हानी मुझे
अहबाब-ओ-अक़ारिब के बरताव कोई देखे
ज़ेर-ए-ज़मीं रहूँ कि तह-ए-आसमाँ रहूँ
दम-ए-आख़िर मुसीबत काट दो बहर-ए-ख़ुदा मेरी
काबे में हम ने जा के कुछ और हाल देखा
ईमान साथ जाएगा क्यूँकर ख़ुदा के घर
कोई अच्छा नज़र आ जाए तो इक बात भी है