बुरा हूँ मैं जो किसी की बुराइयों में नहीं
भले हो तुम जो किसी का भला नहीं करते
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क़ब्र पर क्या हुआ जो मेला है
जब कहा मैं ने कि मर मर के बचे हिज्र में हम
बैठे हुए हैं हम ख़ुद आँखों में धूल डाले
न रो इतना पराए वास्ते ऐ दीदा-ए-गिर्यां
ज़ुल्फ़ को क्यूँ जकड़ के बाँधा है
हम उम्र के साथ हैं सफ़र में
आशिक़ों की रूह को ता'लीम-ए-वहदत के लिए
जो पूछा दिल हमारा क्यूँ लिया तो नाज़ से बोले
ऐ बुतो रंज के साथी हो न आराम के तुम
ईसा से दवा-ए-मरज़-ए-इश्क़ न होगी
हमारे एक दिल को उन की दो ज़ुल्फ़ों ने घेरा है
सुनोगे हाल जो मेरा तो दाद क्या दोगे