आशिक़ों की रूह को ता'लीम-ए-वहदत के लिए
जिस जगह अल्लाह रहता है वहाँ रहना पड़ा
Gulzar
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तू न आएगा तो हो जाएँगी ख़ुशियाँ सब ख़ाक
जान ये कह के बुत-ए-होश-रुबा ने ले ली
एक हम हैं कि जहाँ जाएँ बुरे कहलाएँ
तुम्हें चाहूँ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ
मेरी अरमान भरी आँख की तासीर है ये
अपनी महफ़िल में रक़ीबों को बुलाया उस ने
हौसला इम्तिहान से निकला
मेरे ग़ुबार की ये तअ'ल्ली तो देखिए
हम ने पाई लज़्ज़त-ए-दीदार लेकिन दूर से
हस्ती-ए-ग़ैर का सज्दा है मोहब्बत में गुनाह
दिल-दादगान-ए-हुस्न से पर्दा न चाहिए