एक हम हैं कि जहाँ जाएँ बुरे कहलाएँ
एक वो हैं कि जहाँ जाएँ वहीं अच्छे हैं
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तुम क्यूँ शब-ए-जुदाई पर्दे में छुप गए हो
उस का भी एक वक़्त है आने दो मौत को
दिल काम का नहीं तो न लो जान नज़्र है
मुख़ालिफ़ है सबा-ए-नामा-बर कुछ और कहती है
बिछड़ना भी तुम्हारा जीते-जी की मौत है गोया
जब कहा मैं हूँ तिरे इश्क़ में बदनाम कि तू
दूर क्यूँ जाऊँ यहीं जल्वा-नुमा बैठा है
ज़ुल्फ़ का हाल तक कभी न सुना
किसी के संग-ए-दर से अपनी मय्यत ले के उट्ठेंगे
बाक़ी की मोहब्बत में दिल साफ़ हुआ इतना
जलेगा दिल तुम्हें बज़्म-ए-अदू में देख कर मेरा
उठे उठ कर चले चल कर थमे थम कर कहा होगा