इक हम हैं कि हम ने तुम्हें माशूक़ बनाया
इक तुम हो कि तुम ने हमें रक्खा न कहीं का
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उम्र सब ज़ौक़-ए-तमाशा में गुज़ारी लेकिन
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
सब शरीक-ए-सदमा-ओ-आज़ार कुछ यूँही से हैं
अगर तुम दिल हमारा ले के पछताए तो रहने दो
मकतब की आशिक़ी भी तारीख़-ए-ज़िंदगी थी
सुनोगे हाल जो मेरा तो दाद क्या दोगे
सहें कब तक जफ़ाएँ बेवफ़ाई देखने वाले
हमारे एक दिल को उन की दो ज़ुल्फ़ों ने घेरा है
वफ़ा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते
ख़ूब इस दिल पे तिरी आँख ने डोरे डाले
इक नक़्श-ए-ख़याल रू-ब-रू है
ऐ हिना रंग-ए-मोहब्बत तो है मुझ में भी निहाँ