ख़ूब इस दिल पे तिरी आँख ने डोरे डाले
ख़ूब काजल ने तिरी आँख में डोरा खींचा
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उन को आती थी नींद और मुझ को
ये नक़्शा है कि मुँह तकने लगा है मुद्दआ' मेरा
ग़ुरूर-ए-उल्फ़त की तर्ज़-ए-नाज़िश अजब करिश्मे दिखा रही है
ख़्वाहिश-ए-दीद पे इंकार से आते हैं मज़े
रंज-ए-ग़ुर्बत में देख कर मुझ को
मैं तिरी राह-ए-तलब में ब-तमन्ना-ए-विसाल
जो पूछा मुँह दिखाने आप कब चिलमन से निकलेंगे
इतने अच्छे हो कि बस तौबा भली
उम्र काटी बुतों की आड़ों में
दम-ए-ख़्वाब-ए-राहत बुलाया उन्हों ने तो दर्द-ए-निहाँ की कहानी कहूँगा
मिरा रोना हँसी-ठट्ठा नहीं है
ऐ हिना रंग-ए-मोहब्बत तो है मुझ में भी निहाँ