मिरा रोना हँसी-ठट्ठा नहीं है
ज़रा रोके रहो अपनी हँसी तुम
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ख़ूब इस दिल पे तिरी आँख ने डोरे डाले
एक हम हैं कि जहाँ जाएँ बुरे कहलाएँ
इतने अच्छे हो कि बस तौबा भली
पहले हम में थे और अब हम से जुदा रहते हैं
वो कहते हैं कि क्यूँ जी जिस को तुम चाहो वो क्यूँ अच्छा
बुतों में नूर-ए-ज़ात-ए-किब्रिया मालूम होता है
ईमान साथ जाएगा क्यूँकर ख़ुदा के घर
रूह देती रही तर्ग़ीब-ए-तअ'ल्ली बरसों
जब मैं ने कहा दिल मिरा पामाल किया क्यूँ
यही सूरत वहाँ थी बे-ज़रूरत बुत-कदा छोड़ा
उस से कह दो कि वो जफ़ा न करे