उस से कह दो कि वो जफ़ा न करे
कहीं मुझ सा उसे ख़ुदा न करे
आइना देख कर ग़ुरूर फ़ुज़ूल
बात वो कर जो दूसरा न करे
मैं मसीहा उसे समझता हूँ
जो मिरे दर्द की दवा न करे
'मुज़्तर' उस ने सवाल-ए-उल्फ़त पर
किस अदा से कहा ख़ुदा न करे
Gulzar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Wasi Shah
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(311) Peoples Rate This
पूछा कि वज्ह-ए-ज़िंदगी बोले कि दिलदारी मिरी
पड़ा हूँ इस तरह उस दर पे 'मुज़्तर'
लड़ाई है तो अच्छा रात-भर यूँ ही बसर कर लो
वक़्त दो मुझ पर कठिन गुज़रे हैं सारी उम्र में
रह के पर्दे में रुख़-ए-पुर-नूर की बातें न कर
उम्र काटी बुतों की आड़ों में
तुम्हें चाहूँ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ
हाल उस ने हमारा पूछा है
हसीनों पर नहीं मरता मैं इस हसरत में मरता हूँ
दिल का मोआ'मला जो सुपुर्द-ए-नज़र हुआ
ऐ ख़ुदा दुनिया पे अब क़ब्ज़ा बुतों का चाहिए
किसी के तीर को छाती से हम लगाए रहे