पड़ा हूँ इस तरह उस दर पे 'मुज़्तर'
कोई देखे तो जाने मार डाला
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क्या कहूँ हसरत-ए-दीदार ने क्या क्या खींचा
ज़ेर-ए-ज़मीं रहूँ कि तह-ए-आसमाँ रहूँ
क्या असर ख़ाक था मजनूँ के फटे कपड़ों में
ख़्वाहिश-ए-दीद पे इंकार से आते हैं मज़े
मिरे उन के तअ'ल्लुक़ पर कोई अब कुछ नहीं कहता
जगाने चुटकियाँ लेने सताने कौन आता है
ठहरना दिल में कुछ बेहतर न जाना
ऐ इश्क़ कहीं ले चल ये दैर-ओ-हरम छूटें
हिज्र में हो गया विसाल का क्या
कैसे दिल लगता हरम में दौर-ए-पैमाना न था
पर्दा-ए-दर्द में आराम बटा करते हैं
जलेगा दिल तुम्हें बज़्म-ए-अदू में देख कर मेरा