मिरे उन के तअ'ल्लुक़ पर कोई अब कुछ नहीं कहता
ख़ुदा का शुक्र सब के मुँह में ताले पड़ते जाते हैं
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ईसा से दवा-ए-मरज़-ए-इश्क़ न होगी
मिरे अरमान मायूसी के पाले पड़ते जाते हैं
नहीं हूँ मैं तो तिरी बंदगी के क्या मा'नी
ये तो समझा मैं ख़ुदा को कि ख़ुदा है लेकिन
बुरा हूँ मैं जो किसी की बुराइयों में नहीं
वहाँ जा कर किए हैं मैं ने सज्दे अपनी हस्ती को
उस से कह दो कि वो जफ़ा न करे
हमारे एक दिल को उन की दो ज़ुल्फ़ों ने घेरा है
जलवा-ए-रुख़सार-ए-साक़ी साग़र-ओ-मीना में है
पहले हम में थे और अब हम से जुदा रहते हैं
आतिश-ए-हुस्न से इक आब है रुख़्सारों में
किसी ने न देखा तिरे हुस्न को