किसी ने न देखा तिरे हुस्न को
मिरी सूरत-ए-हाल देखी गई
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इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता
लड़ाई है तो अच्छा रात-भर यूँ ही बसर कर लो
मियान-ए-हश्र ये काफ़िर बड़े इतराए फिरते हैं
ख़िदमत-ए-गश्त बगूलों को तो दी सहरा में
निछावर बुत-कदे पर दिल करूँ का'बा तो कोसों है
इतने अच्छे हो कि बस तौबा भली
इक पर्दा-नशीं की आरज़ू है
याद करना ही हम को याद रहा
उम्र सब ज़ौक़-ए-तमाशा में गुज़ारी लेकिन
मैं नहीं हूँ नग़्मा-ए-जाँ-फ़ज़ा मुझे सुन के कोई करेगा क्या
तसव्वुर ख़ाना-आबादी करेगा
ऐ ख़ुदा दुनिया पे अब क़ब्ज़ा बुतों का चाहिए