लड़ाई है तो अच्छा रात-भर यूँ ही बसर कर लो
हम अपना मुँह इधर कर लें तुम अपना मुँह उधर कर लो
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उन्हों ने क्या न किया और क्या नहीं करते
ऐ ख़ुदा दुनिया पे अब क़ब्ज़ा बुतों का चाहिए
कूचा-ए-यार से यारब न उठाना हम को
ईसा कभी न जाते लेकिन तुम्हारे ग़म में
मेरी अरमान भरी आँख की तासीर है ये
दिल को मैं अपने पास क्यूँ रक्खूँ
मोहब्बत क़द्र-दाँ होती तो फिर काहे का रोना था
अब इस से बढ़ के क्या नाकामियाँ होंगी मुक़द्दर में
तेरे मूए-ए-मिज़ा खटकते हैं
ये नक़्शा है कि मुँह तकने लगा है मुद्दआ' मेरा
उस का भी एक वक़्त है आने दो मौत को
जो पूछा मुँह दिखाने आप कब चिलमन से निकलेंगे