किसी के तीर को छाती से हम लगाए रहे
तमाम उम्र कलेजे के पार ही रक्खा
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अब कौन फिरे कू-ए-बुत-ए-दुश्मन-ए-दीं से
आशिक़ों की रूह को ता'लीम-ए-वहदत के लिए
उम्र सब ज़ौक़-ए-तमाशा में गुज़ारी लेकिन
मिरा रोना हँसी-ठट्ठा नहीं है
वो क़ुदरत के नमूने क्या हुए जो उस में पहले थे
क्या असर ख़ाक था मजनूँ के फटे कपड़ों में
क़यामत में बड़ी गर्मी पड़ेगी हज़रत-ए-ज़ाहिद
हौसला इम्तिहान से निकला
इतने अच्छे हो कि बस तौबा भली
अदू को छोड़ दो फिर जान भी माँगो तो हाज़िर है
फ़ना के बा'द इस दुनिया में कुछ बाक़ी नहीं रहता