अदू को छोड़ दो फिर जान भी माँगो तो हाज़िर है
तुम ऐसा कर नहीं सकते तो ऐसा हो नहीं सकता
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ये तुम बे-वक़्त कैसे आज आ निकले सबब क्या है
जब कहा मैं ने कि मर मर के बचे हिज्र में हम
हाल उस ने हमारा पूछा है
इतने अच्छे हो कि बस तौबा भली
हमारे एक दिल को उन की दो ज़ुल्फ़ों ने घेरा है
वो कहते हैं कि क्यूँ जी जिस को तुम चाहो वो क्यूँ अच्छा
मिरे गुनाह ज़ियादा हैं या तिरी रहमत
तू न आएगा तो हो जाएँगी ख़ुशियाँ सब ख़ाक
याद करना ही हम को याद रहा
जो पूछा मुँह दिखाने आप कब चिलमन से निकलेंगे
गए हम दैर से काबे मगर ये कह के फिर आए
अहबाब-ओ-अक़ारिब के बरताव कोई देखे