याद करना ही हम को याद रहा
भूल जाना भी तुम नहीं भूले
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ज़ुल्फ़ का हाल तक कभी न सुना
सुनोगे हाल जो मेरा तो दाद क्या दोगे
ये तुम बे-वक़्त कैसे आज आ निकले सबब क्या है
रह के पर्दे में रुख़-ए-पुर-नूर की बातें न कर
चाहत की नज़र आप से डाली भी गई है
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
ये नक़्शा है कि मुँह तकने लगा है मुद्दआ' मेरा
मेरी अरमान भरी आँख की तासीर है ये
ख़त फाड़ के फेंका है तो लिक्खा भी मिटा दो
तुम्हें चाहूँ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ
ग़ुरूर-ए-उल्फ़त की तर्ज़-ए-नाज़िश अजब करिश्मे दिखा रही है
क़ब्र पर क्या हुआ जो मेला है