क़ब्र पर क्या हुआ जो मेला है
मरने वाला निरा अकेला है
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पहले हम में थे और अब हम से जुदा रहते हैं
जब कहा मैं हूँ तिरे इश्क़ में बदनाम कि तू
मिरे दल ने झटके उठाए हैं कितने ये तुम अपनी ज़ुल्फ़ों के बालों से पूछो
मोहब्बत कर के लाखों रंज झेले बेकली पाई
बुत-कदे में तो तुझे देख लिया करता था
उड़ा कर ख़ाक हम काबे जो पहुँचे
वक़्त-ए-आख़िर क़ज़ा से बिगड़ेगी
सहें कब तक जफ़ाएँ बेवफ़ाई देखने वाले
न बुलवाया न आए रोज़ वा'दा कर के दिन काटे
दिल क्या करे जो राज़ मोहब्बत का खुल गया
अपनी महफ़िल में रक़ीबों को बुलाया उस ने
अपने अहद-ए-वफ़ा को भूल गए