दिल क्या करे जो राज़ मोहब्बत का खुल गया
मैं क्या करूँ कि इश्क़ ही इक नामवर से है
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अहबाब-ओ-अक़ारिब के बरताव कोई देखे
मोहब्बत बा'इस-ए-ना-मेहरबानी होती जाती है
ज़ुल्फ़ को क्यूँ जकड़ के बाँधा है
चाहत की तमन्ना से कोई आँच न आई
वक़्त-ए-आख़िर क़ज़ा से बिगड़ेगी
ज़बाँ क़ासिद की 'मुज़्तर' काट ली जब उन को ख़त भेजा
किसी के संग-ए-दर से अपनी मय्यत ले के उट्ठेंगे
फ़ना के बा'द इस दुनिया में कुछ बाक़ी नहीं रहता
बाज़ू पे रख के सर जो वो कल रात सो गया
वो क़ुदरत के नमूने क्या हुए जो उस में पहले थे
ये तो समझा मैं ख़ुदा को कि ख़ुदा है लेकिन
वो कहते हैं ये सारी बेवफ़ाई है मोहब्बत की