बाज़ू पे रख के सर जो वो कल रात सो गया
आराम ये मिला कि मिरा हात सो गया
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पर्दा-ए-दर्द में आराम बटा करते हैं
यूँ कहीं डूब के मर जाऊँ तो अच्छा है मगर
फूंके देता है किसी का सोज़-ए-पिन्हानी मुझे
आह-ए-रसा ख़ुदा के लिए देख-भाल के
पूछा कि वज्ह-ए-ज़िंदगी बोले कि दिलदारी मिरी
उन को आती थी नींद और मुझ को
पड़ा हूँ इस तरह उस दर पे 'मुज़्तर'
अगर तक़दीर सीधी है तो ख़ुद हो जाओगे सीधे
कोई अच्छा नज़र आ जाए तो इक बात भी है
किसी के दर्द-ए-मोहब्बत ने उम्र भर के लिए
मेरे अश्कों की रवानी को रवानी तो कहो
मोहब्बत क़द्र-दाँ होती तो फिर काहे का रोना था