आह-ए-रसा ख़ुदा के लिए देख-भाल के
उन का भी घर मिला हुआ दुश्मन के घर से है
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अहबाब-ओ-अक़ारिब के बरताव कोई देखे
रुख़ किसी का नज़र नहीं आता
ग़ुरूर-ए-उल्फ़त की तर्ज़-ए-नाज़िश अजब करिश्मे दिखा रही है
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
लड़ाई है तो अच्छा रात-भर यूँ ही बसर कर लो
उम्र काटी बुतों की आड़ों में
हाल-ए-दिल अग़्यार से कहना पड़ा
ख़िज़र भी आप पर आशिक़ हुए हैं
हम वफ़ा करते हैं हम पर जौर कोई क्यूँ करे
बुरा हूँ मैं जो किसी की बुराइयों में नहीं
मसीहा जा रहा है दौड़ कर आवाज़ दो 'मुज़्तर'
उन को आती थी नींद और मुझ को